वक़्फ संशोधन बिल 2024 के संदर्भ में कांस्टीट्यूशन क्लब में जमीयत उलमा-ए-हिंद और मुस्लिम पर्सनल लाॅ बोर्ड की ओर से आयोजित एक संयुक्त प्रेस काॅन्फ्रेंस को संबोधित करते हुए, अध्यक्ष जमीयत उलमा-ए-हिंद मौलाना अरशद मदनी ने एक बार फिर अपनी यह बात दुहराई कि जो संशोधन बिल वक़्फ से सम्बंधित लाया जा रहा है यह न केवल असंवैधनिक, अलोकतांत्रिक और अन्यायपूर्ण है बल्कि वक़्फ ऐक्ट में किए जाने वाले प्रस्तावित संशोधन भारतीय संविधान से प्राप्त बिल के द्वारा अधिकारियों और सदस्यों के लिए मुसलमान होने की शर्त भी समाप्त की जा रही है, मौलाना मदनी ने कहा कि यह हिंदू-मुस्लिम का मुद्दा नहीं है बल्कि संविधान और नियम का मुद्दा है।
यह बिल हमारी धार्मिक स्वतंत्रता के भी खिलाफ है, उन्होंने यह भी कहा कि हिंदू धार्मिक स्थलों की देखभाल और सुरक्षा के लिए जो श्राइन बोर्ड गठित किया गया है उसके लिए स्पष्ट रूप से यह विवरण मौजूद है कि जैन, सिख या बौध उसके सदस्य नहीं होंगे, उन्होंने प्रश्न किया कि अगर जैन, सिख और बौध श्राइन बोर्ड के सदस्य नहीं हो सकते तो वक़्फ बोर्ड में गैर मुस्लिमों का नामांकन या नियुक्ति को किस प्रकार से उचित ठहराया जा सकता है,?
जबकि जैन और बौध को हिंदू धर्म से अलग नहीं समझा जाता बल्कि उन्हें एक अलग वर्ग माना जाता है, इसलिए अगर श्राइन बोर्ड में हिंदू होते हुए भी एक वर्ग होने के आधार पर उनकी भागीदारी नहीं हो सकती तो वक़्फ बोर्डों में गैर-मुस्लिमों का नामांकन या नियुक्ति को अनिवार्य क्यों किया जा रहा है?
हालाँकि यूपी, केरल, कर्नाटक, तमिलनाडू, आंधरा प्रदेश आदि में ऐसे नियम मौजूद हैं कि हिंदूम धर्म की संपत्ति की देखरेख का प्रबंधन करने वालों का हिंदू धर्म का अनुयायी होना ज़रूरी है, जिस तरह हिंदूओं, सिखों और ईसाईयों के धार्मिक कार्यां में किसी अन्य धार्मिक वर्गों का हस्तक्षेप नहीं हो सकता है तो ठीक उसी तरह वक़्फ की संपत्तियों का प्रबंधन भी मुसलमानों के ही द्वारा होना चाहिए, इसलिए हमें कोई ऐसा प्रस्ताव वक़्फ प्रणली में कदापि स्वीकार नहीं है, उन्होंने कहा कि इससे स्पष्ट है कि सरकार की नीयत में खोट है और इस बिल के द्वारा उसका उद्देश्य कामकाज में पारदर्शिता लाना और मुस्लिम समुदाय को लाभ पहुंचाना नहीं बल्कि मुसलमानों को उनकी वक़्फ संपत्तियों से वंचित कर देने के साथ साथ वक़्फ संपत्तियों पर से मुसलमानों के दावे को कमज़ोर बना देना है, यही नहीं बिल में किए जाने वाले संशोधन की आड़ लेकर कोई भी व्यक्ति किसी मस्जिद, क़ब्रिस्तान, इमाम बाड़ा, इमारत और भूमि की वक़्फ स्थिति पर प्रश्न चिन्ह लगा सकता है।
यह बिल हमारी धार्मिक स्वतंत्रता के भी खिलाफ है, उन्होंने यह भी कहा कि हिंदू धार्मिक स्थलों की देखभाल और सुरक्षा के लिए जो श्राइन बोर्ड गठित किया गया है उसके लिए स्पष्ट रूप से यह विवरण मौजूद है कि जैन, सिख या बौध उसके सदस्य नहीं होंगे, उन्होंने प्रश्न किया कि अगर जैन, सिख और बौध श्राइन बोर्ड के सदस्य नहीं हो सकते तो वक़्फ बोर्ड में गैर मुस्लिमों का नामांकन या नियुक्ति को किस प्रकार से उचित ठहराया जा सकता है,?
जबकि जैन और बौध को हिंदू धर्म से अलग नहीं समझा जाता बल्कि उन्हें एक अलग वर्ग माना जाता है, इसलिए अगर श्राइन बोर्ड में हिंदू होते हुए भी एक वर्ग होने के आधार पर उनकी भागीदारी नहीं हो सकती तो वक़्फ बोर्डों में गैर-मुस्लिमों का नामांकन या नियुक्ति को अनिवार्य क्यों किया जा रहा है?
हालाँकि यूपी, केरल, कर्नाटक, तमिलनाडू, आंधरा प्रदेश आदि में ऐसे नियम मौजूद हैं कि हिंदूम धर्म की संपत्ति की देखरेख का प्रबंधन करने वालों का हिंदू धर्म का अनुयायी होना ज़रूरी है, जिस तरह हिंदूओं, सिखों और ईसाईयों के धार्मिक कार्यां में किसी अन्य धार्मिक वर्गों का हस्तक्षेप नहीं हो सकता है तो ठीक उसी तरह वक़्फ की संपत्तियों का प्रबंधन भी मुसलमानों के ही द्वारा होना चाहिए, इसलिए हमें कोई ऐसा प्रस्ताव वक़्फ प्रणली में कदापि स्वीकार नहीं है, उन्होंने कहा कि इससे स्पष्ट है कि सरकार की नीयत में खोट है और इस बिल के द्वारा उसका उद्देश्य कामकाज में पारदर्शिता लाना और मुस्लिम समुदाय को लाभ पहुंचाना नहीं बल्कि मुसलमानों को उनकी वक़्फ संपत्तियों से वंचित कर देने के साथ साथ वक़्फ संपत्तियों पर से मुसलमानों के दावे को कमज़ोर बना देना है, यही नहीं बिल में किए जाने वाले संशोधन की आड़ लेकर कोई भी व्यक्ति किसी मस्जिद, क़ब्रिस्तान, इमाम बाड़ा, इमारत और भूमि की वक़्फ स्थिति पर प्रश्न चिन्ह लगा सकता है।
मौलाना मदनी ने यह भी कहा कि इससे नए विावाद का एक असीमित सिलसिला शुरू हो सकता है और संशोधन बिल में मौजूद मुसलमानों की कमज़ोर क़ानूनी स्थिति का लाभ उठाकर वक़्फ संपत्तियों पर क़ज़ा करना आसान हो सकता है, उन्होंने यह भी कहा कि हम एक दो संशोधनों की बात नहीं कर रहे हैं बल्कि बिल के अधिकतर संशोधन असंवैधनिक और वक़्फ के लिए खतरनाक है, दूसरे यह बिल मुसलमानों को दिए गए संवैधानिक अधिकरों पर भी एक हमला है।
संविधान ने अगर देश के हर नागरिक को धार्मिक स्वतंत्रता और समान अधिकार दिए हैं तो वहीं देश में आबाद अल्संख्यकों को अन्य अधिकार भी दिए गए हैं और संशोधन बिल इन सभी अधिकारों को पूर्ण रूप से नकारता है।
अंत में मौलाना मदनी ने आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा कि वक़्फ संशोधन बिल 2024 के अंतर्गत सुझाव दिया गया है कि वर्तमान ऐक्ट की धारा 40 पूर्ण रूप से हटा दी जाए जबकि वक़्फ पर 2006 में संयुक्त संसदीय समिति और जस्टिस सच्चर कमेटी ने रिपोर्ट दी थी कि बड़ी संख्या में वक़्फ की संपत्तियों पर अवैध क़ब्ज़े हैं और इसी सच्चर कमेटी रिपोर्ट का संदर्भ वर्तमान सरकार भी दे रही है, लेकिन इसके बावजूद 2024 के बिल में यह प्रस्ताव दिया गया कि राज्यों के वक़्फ बोर्ड को यह अधिकार न दिया जाए कि इन संपत्तियों की पहचान करे जिस पर अवैध क़ब्ज़ा हैं और उनकी पुनर्प्राप्त के लिए प्रयास करे।
सरकार का यह प्रस्ताव वक़्फ के अस्तित्व के लिए घातक है, उन्होंने यह भी कहा कि पिछले दस वर्षों के में देश के अल्पसंख्यकों विशेष रूप से मुसलमानों को पीठ से लगा देने और यह विश्वास कराने के लिए कि अब नागरिक के रूप में उनके कुछ भी अधिकार नहीं रह गए हैं, कई कानून जबरन लाए और लागू किए गए हैं। यह वक़्फ संशोधन बिल भी उनमें से एक है जिसे किसी भी स्थिति में स्वीकार करवाकर मुसलमानों पर जबरन लागू करने की साजिश हो रही है, जिसे हम स्वीकार नहीं कर सकते।
Author: Irtiza Sameen
'Irtiza Sameen' is an Indian Emerging journalist who is the Founder and CEO of @TheNewslytics, Co-founder of @DainikDarpan24News and works with multiple media organization like @Lallanpost and @journomirror, He raises his voice for Indian minorities and marginalized people through news, and likes to write for his backward region of Bihar (Seemanchal)